आरजू

आरजू

थी तुम्हे अपना बनाने की

जो इस दिल में खलिश बनकर रह गयी ।

आरजू

थी तुम्हारे साथ ज़िन्दगी बिताने की

जो इस दिल में कशिश बनकर पनपने लगी ।

क्या खूब हसीनं पल था वो…

जब तुम पहली बार नज़र आये थे

आरजू सी जगने लगी तबसे

उस हसींन पल को बार बार जीने की ।

खो रहा हु

आपकी उस सादगी भरी अदाओ में

चाँद की रौशनी में खिल रही आपकी हंसीं में

उन भीगे हुए आपकी नशीली ओठों में

आरजू सी होने लगी तबसे

आपकीे जुल्फों की छाव में सोने की ।

आपकी आँखों की वो चमक

कानो में हिलते हुए वो कुंडल

चूड़ियों की खनखनाट

धड़कन जैसी चाल

आरजू सी जगा गयी आपसे प्यार करने की ।

चाहते है तुम्हे हम खुदसे ज्यादा

हो जाओ तुम अब रबसे जुदा

आ जाओ अब लौट के तुम

हमे तुमसे है प्यार बहुत ज्यादा …।

ना मिलना था हमने कभी

ना होना था प्यार कभी

क्यों छोड़ गए तुम हमे

इस गहरे मोहब्बत के सागर में

आरजू सी होने लगी तबसे

प्यार के सागर में डूब के मर जाने की ।

ऐ खुदा तुझसे ना कोई शिकवा

ना जमीं पर मेरी मोहब्बत बरि की

कम से कम

आसमान में उनकी रूह से तो मिला दे

आरजूसी होने लगी तबसे

आपकी रूह से मेरे रूह को रुबरू होने की ।

अभिजीत घोरपडे

दीं : 08-12-2018

वेळ : 10:50 P.M.

Leave a comment